मुझे याद रखना - 1 आयुषी सिंह द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मुझे याद रखना - 1

आज ही हरिद्वार से देहरादून आया हूँ। सच में देहरादून की खूबसूरती के बारे में जितना सुना है उससे कहीं ज्यादा खूबसूरत जगह है यह। रास्ते भर प्रकृति की सुंदरता देखता आया पर यहाँ इस पुलिस क्वार्टर में देख रहा हूँ कि सारा सामान बिखरा पड़ा है और सफर की वजह से एक भी सामान रखने का मन नहीं हो रहा है यूँ तो मेरे सारे काम करने के लिए रामू काका हैं पर अपने कुछ काम तो करने ही हैं, खैर अब तो आदत सी हो गई है सामान रखने और समेटने की। क्या करें एस. पी. की जॉब ही ऐसी है कि ट्रांसफर होता ही रहता है । दरअसल मुझे यहाँ इसलिए भेजा गया है क्योंकि आजकल यहाँ काफी मर्डर्स हो रहे हैं और उनकी गुत्थी सुलझने का नाम ही नहीं लेती और मेरा अबतक का रिकॉर्ड देखकर ही यहाँ पर मेरा ट्रांसफर किया गया है।
आज तो इतना थक गया हूँ कि कुछ बनाने का मन नहीं हो रहा है और इस वक्त रामू काका को परेशान करने का मेरा कोई इरादा नहीं है, पर माँ ने कसम खिला के भेजा है कि दोनों वक्त का खाना जरूर खाना है तो नूडल्स बना लिए...... हम्म अच्छे बने हैं इस जॉब ने मुझे परिवार से दूर करने के साथ साथ एक अच्छा कुक भी बना दिया है। अब यूनिफार्म निकाल लेता हूँ ताकि कल सुबह वापस आॅफिस जॉइन कर सकूँ पिछली बार जॉइन तो कर लिया पर घर पर सबके साथ कुछ समय बिताने के लिए छुट्टियाँ ले रखी थी......अरे यार इसकी तो प्रेस ही खराब हो गई अब इतनी रात को कौन प्रेस करके देगा, खुद ही करना पड़ेगा।
शायद मैं बना ही हूँ खाकी के लिए तभी तो बचपन से ही सबसे पसंदीदा रंग खाकी लगता है और जब थोड़ी समझ आई तो पापा को देखा, कितना रॉब है उनकी आवाज में, उनके काम में, पापा ने अपना फर्ज पूरी ईमानदारी और जिम्मेदारी से निभाया है।उनकी ईमानदारी और हिम्मत के चलते उन्हें पुलिस डिपार्टमैंट से काफी मैडल्स भी मिले हैं और पापा को देखकर ही मुझ पर भी पुलिस डिपार्टमैंट जॉइन करने का भूत चढ़ गया जो कि मेरे एस. पी. बनने पर ही उतरा। अब पापा की तरह मेरी वर्दी पर भी मैडल्स है पर अभी तो सिर्फ दो ही हैं और इस वर्दी पर हर्षद प्रताप सिंह देखकर लगता है जैसे चाँद तोड़ लिया है.....अरे हर्षद प्रताप सिंह मैं ही हूँ...... मेरे दोस्त अक्सर मुझसे कहते " भाई तू कहाँ पुलिस के चक्कर में पड़ रहा है, तू पुलिस डिपार्टमैंट के लिए नहीं बल्कि ऐक्टिंग के लिए बना है कभी आइने में देख खुद को। " तो मैं भी हंस कर कहता " भाई ऐक्टिंग में, हीरोपंती में क्या रखा है वो सब तो दिखावा होता है, असली हीरो तो पुलिस और आर्मी वाले होते हैं जो अपने देश के लिए कुछ भी कर गुजरने का जज्बा रखते हैं। " यह सुनकर वो सब हंस कर कहते " भाई तू जल्दी पुलिस डिपार्टमैंट जॉइन कर और हमें भी कुछ खिला पिला " और आज भी मैं उनको खिला पिला के ही आ रहा हूँ, बोले " भाई तू जा रहा है अब पता नहीं कब मिले एक पार्टी तो बनती है " और इसी तरह मेरी सैलेरी का बीस प्रतिशत भाग ये लोग खा पी जाते हैं और बाकी सब कुछ मैं पापा को देता हूँ जिनकी वजह से मैं इन ऊँचाइयों तक पहुंचा हूँ, वो मना करते हैं पर उन्हें अपनी सैलेरी देकर जो खुशी मिलती है वो कहीं नहीं मिल सकती। पापा, माँ, भैया, भाभी और अनन्या सभी मुझ पर गर्व करते हैं और इन सबकी वजह से ही मैं बिना किसी चिंता के अपनी नौकरी कर सकता हूँ क्योंकि मुझे पता है कि मेरे पीछे से भैया भाभी और अनन्या माँ पापा का पूरा ध्यान रखते हैं।
अरे इस वक्त किसका मैसेज है! ओह.....अनन्या है मुझे तो लगा यह भूल ही गई कि मैं अब हरिद्वार में नहीं देहरादून में हूँ और अब रोज इससे मिल भी नहीं पाउंगा। ये भी कितनी पागल है और मुझे भी पागल कर रखा है। पहली बार स्कूल में देखा था मैंने अनन्या को और जब मुझसे ज्यादा मार्क्स लाई तो मैं चिढ़ गया था क्योंकि मैं हमेशा से हर चीज़ में फर्स्ट रहा था। पर धीरे धीरे हमारी फीलिंग्स बदल गई और उसे मुझसे प्यार हो गया और मुझे उससे पर मैं शायद समझ नहीं पाया और हमारी फेयरवैल पार्टी में उसने मुझे प्रपोज किया तो मैंने उसे सॉरी कह दिया। फिर कोइंसिडेंटली हमने एक ही कॉलेज में एडमिशन लिया पर इस बार जब मैंने अनन्या को देखा, वो बिलकुल बदल गई थी। हमेशा खुश रहने वाली, मस्ती करने वाली लड़की एकदम चुप हो गई थी, मुझसे नजरें चुराने लग गयी थी, मेरे सामने भी नहीं आती थी तब पहली बार मुझे उसके लिए बुरा लगा, और कुछ दिन बाद मुझ बेअक्ल को भी समझ आ गया कि मैं उसके लिए क्या फील करता हूँ और उसे अगले दिन ही प्रपोज कर दिया और उसने खुशी खुशी हाँ कह दिया। अब तो हमारी ऐंगेजमेंट भी हो गई है बस उसका एमबीए होते ही उसे एक अच्छी जॉब मिल जाए फिर हमारे माँ पापा हमारी शादी करवा देंगे........

कल रात तो सोचते सोचते कब नींद आई पता भी नहीं चला.... अब हो गया न लेट ओफ्फो ड्राइवर भी आ गया चलो जैसे तैसे तैयार तो हुआ, अब अॉफिस पहुंचता हूँ।
" गुड मॉर्निंग हर्षद सर.... तो कब आए आप? " यह इंस्पेक्टर अमन की आवाज़ थी। मैंने कहा " कल ही आया हूँ " कुछ देर हम दोनों कुछ केस पर चर्चा करने लगे। अभी हमें इस बारे में बात करते ज्यादा समय नहीं हुआ था इतने में एक लड़की का फोन आया वह बोली " यहाँ हाइवे पर कुछ है आप जल्दी आइए " मैं सोचने लगा आज ही तो आया हूँ आज ही यह आफत मिल गयी। जब हम हाइवे पर पहुंचे तो देखा जिस लड़की ने हमें फोन करके बुलाया था वह वहाँ थी ही नहीं। वहाँ रोड के एक तरफ गड्ढे में पानी भरा हुआ था और दूसरी तरफ झाड़ियां और कुछ छोटे बड़े पेड़ पौधे थे, आसपास एकदम सन्नाटा था। हम उन झाड़ियों में आगे बड़े ही थे कि वहाँ का नजारा देखकर मेरी आँखें फटी की फटी रह गई........उन झाड़ियों के बीच में एक लड़की की लाश मिली जिसका चेहरा पूरी तरह से बिगड़ा हुआ था, पहचानना मुश्किल था, पहनावे और कद काठी से वह कोई 20-25 साल की लग रही थी। मैंने कॉन्स्टेबल रागिनी से कहा कि उस लड़की की लाश से कुछ आइ. डी. वगरह की तलाशी करे और इंस्पेक्टर अमन और कॉन्स्टेबल अर्जुन को आसपास जाकर देखने के लिए कहा। पर मैं खुद भी जानता था कि यह अंधेरे में तीर चलाने जैसा है क्योंकि वहाँ कुछ भी नहीं था न कोई इंसान, न कोई परिंदा, न कोई दुकान, न कोई मकान सब कुछ सुनसान..... रागिनी ने बताया उस लड़की के पास न कोई आइ. डी. प्रूफ था और न ही कोई फोन या पर्स।
अब हालात ऐसे थे कि उस लड़की के बारे में पता चलना नामुमकिन सा हो गया था। अभी मैं आसपास का जायजा कर ही रहा था कि अमन और अर्जुन आ गए, अमन ने कहा " सर सीसीटीवी तो दूर की बात है यहाँ तो कोई इंसान, घर, दूर दूर तक कुछ भी नहीं है। पता नहीं किसी ने इसका खून कर दिया है या फिर इसने खुदखुशी कर ली कुछ भी कहना मुश्किल है। सर मुझे तो लगता है इसने खुदखुशी ही करी है वरना अगर इसके साथ चोरी, लूटपाट या कुछ भी गलत हुआ होता तो इसके हाथ में यह महंगी घड़ी और उंगली में यह गोल्ड की रिंग न होती " एक पल के लिए मैं भी अमन की बात से सहमत हुआ पर अगले ही पल मैने कहा " नहीं अमन यह कोई आत्महत्या नहीं है यह एक मर्डर है " " सर आप ऐसा कैसे कह सकते हैं? " अर्जुन और रागिनी एकसाथ बोले। तब मैंने कहा " ऐसा इसलिए क्योंकि पहली बात तो यह कि कोई भी इंसान अपनी पहचान छुपाकर खुदखुशी क्यों करेगा? कोई तो आइ. डी. प्रूफ होता इसके पास। चलो मान लो इसने अपनी पहचान छिपाई इसका भी कोई करण हो। दूसरी बात कि अगर इस लड़की ने आत्महत्या की है तो देहरादून में मरने के लिए कई जगह हैं जैसे यह किसी पहाड़ी से कूद सकती थी, अपनी छत से कूद सकती थी, या फिर जहर खा सकती थी, फाँसी लगा सकती थी, जब ऐसे हजारों तरीके हैं मरने के तो कोई अपने चेहरा बिगाड़ के क्यों मरेगा? " अमन ज्यादा देर तक चुप नहीं रह पाता है और आखिर बोल ही पड़ा " सर यह भी तो हो सकता है कि यह किसी वाहन के सामने आ गई हो और टक्कर लगने से इसकी मौत हो गई और ड्राइवर डर कर भाग गया " एक बार फिर मैं अमन की बात से सहमत हुआ पर कुछ देर बाद मैंने आगे कहा " नहीं अमन अगर यह किसी वाहन के सामने आती तो क्या सिर्फ इसका चेहरा खराब होता वो भी इतनी बुरी तरह से..... नहीं बल्कि इसके चेहरे के साथ साथ बाकी शरीर पर भी चोट या घाव के निशान होते और आसपास कहीं न कहीं खून के निशान भी होते पर देखो पूरी सड़क साफ है और तो और जहाँ इसकी लाश है वहाँ पर भी खून का कोई निशान तक नहीं है.......आश्चर्य है। " "सर यह भी तो..... " अमन एक बार फिर चुप न रह सका और थक हार कर बिना सिर पैर की बातें करने वाला था पर इससे पहले वो बोलता, मैं समझ गया कि अब यह क्या कहने वाला है " प्लीज़ अमन अब यह मत बोलना कि इसने एक भारी पत्थर खुद उठाया और अपने आप अपने चेहरे पर मार लिया क्योंकि इसके लिए यह एक भारी पत्थर उठाती कैसे? और उठा भी लेती तो क्या इतने भारी पत्थर को अपने सिर के ठीक ऊपर तक लेकर जा पाती? और ले भी जाती तो इसका सिर फूटता, चेहरा न बिगड़ता और अगर इसे अपना चेहरा ही बिगाड़ना था तो यह लेट कर पत्थर उठाती फिर अपने चेहरे पर मारती पर यह तो किसी भी हाल में संभव नहीं है। और सबसे बड़ी बात अगर इसने खुद यह सब किया भी है तो वह पत्थर कहाँ है जिससे इसका चेहरा बिगड़ा, कोई जानवर तो इतना भारी पत्थर लेकर जाने से रहा। "

अब तक हमें वहाँ पर तीन घंटे हो गए थे और हम चारों ने अपने अपने तरीके से कुछ न कुछ सुराग ढूँढने की कोशिश की पर सब बेकार रहा। अब हम सब बुरी तरह से परेशान हो चुके थे कि तभी रागिनी ने दूर, झाड़ियों के आगे इशारा करते हुए कहा " सर वो देखिए वहाँ कोई मकान है..... शायद कुछ पता चल सके " अब हमने अंधेरे में आखिरी तीर छोड़ा और चल दिए उस मकान की तरफ।
पूरे रास्ते में झाड़ियां और पेड़ पौधे थे, शायद उस तरफ कई सालों से कोई नहीं गया था। अमन और अर्जुन झाड़ियां हटाते जा रहे थे और मैं और रागिनी उनके पीछे चल रहे थे। पंद्रह मिनट में हम उस घर के सामने थे। अर्जुन सबसे आगे था और जैसे ही उसने उस मकान में पहला कदम रखा बाहर तेज आँधी आ गई और न जाने कहाँ से एक बड़ा काला पत्थर आकर उसके उसी पैर ( जिस पैर से उसने घर में कदम रखा ) पर गिर पड़ा और वह दर्द से चिल्लाने लगा, शायद उसके पैर में फ्रैक्चर हो गया था पर इतनी दूर आकर हम ऐसे ही वापस नहीं लौट सकते थे इसीलिए अर्जुन को वहीं बाहर बैठा दिया अब मैं सबसे आगे था और जैसे ही मैंने उस मकान में पहला कदम रखा...... हम सभी हतप्रभ रह गए..... आँधी अचानक से शांत हो गई थी जैसे वो मेरे अलावा किसी और को अंदर नहीं जाने देना चाहती थी। खैर....... हम तीनों अंदर गए तो देखा उस मकान में दरवाजे के ठीक सामने दो कमरे थे और बांए तरफ की दीवार लगभग टूट चुकी थी उसके बगल में एक मिट्टी का टूटा हुआ चूल्हा था और दांयी दीवार पर एक बड़ा काला गोला बना हुआ था और उसके ठीक नीचे एक काली कपड़े की गुड़िया थी जिसके चेहरे पर एक काला पत्थर रखा हुआ था। यह सब देखकर रागिनी चिल्लाने लगी " सर यह उसका निशान है, व.....वो..... वो है य..... यहीं कहीं....... वो अ.... आ जाएगी...... किसी को नहीं छोड़ेगी...... स....सर जल्दी चलिए....जल्दी चलिए " मैंने अमन को रागिनी के साथ छोड़ा और खुद पूरा मकान देखा कहीं कुछ नहीं मिला रागिनी अब तक चिल्लाए जा रही थी " सर चलिए " मैंने पूछा " क्या हुआ किसका निशान है रागिनी, कौन आ जाएगी? " रागिनी डर के मारे जोर से चिल्लाकर बोली " चुडै़ल, अब प्लीज़ चलिए सर " रागिनी के इतना कहते ही बाहर तूफान आ गया और अब मुझे भी उसकी बात सही लगने लगी तो सबकी सुरक्षा की खातिर मैंने वापस चलने के लिए कहा। अमन अर्जुन को सहारा देकर चल रहा था और मैं रागिनी के साथ चल रहा था क्योंकि वो बहुत डरी हुई थी, पर सच तो यह है कि डर तो हम सब रहे थे। मैं मन ही मन सोचने लगा यार चोर, डकैत, आतंकियों से लड़ना तो समझ में आता है, पर अब क्या भूत चुड़ैलों से भी लड़ना पड़ेगा, क्या ये ही दिन देखना बचा था ? अबतक आँधी बहुत बढ़ गई थी और धूल की वजह से मैंने आँखें बंद कर ली पर जब चलने में दिक्कत आने लगी तो मजबूरन आँखें खोलनी पड़ी और जब सामने देखा तो लगा मैंने आँखें खोलकर जिंदगी की सबसे बड़ी गलती कर दी........ मेरे डर और आश्चर्य की कोई सीमा न रही, हर तरफ अंधेरा छा गया था, ऐसी बदबू आ रही थी लग रहा था जैसे कोई चिता जल रही हो इस अंधेरे में कुछ भी नहीं दिख रहा था सिवाय उन दो लाल आँखों के जो मुझे ही घूरे जा रही थीं। अब मेरी हालत ऐसी थी कि काटो तो खून नहीं, मेरे मुंह से आवाज निकलना तो दूर मेरी सांसे तक ठहर सी गई, मुझे अपने पैरों की सारी ताकत जाती सी लग रही थी, मेरे पूरे शरीर में सिहरन दौड़ गई......और जो रही सही हिम्मत थी वह भी उसके शब्दों को सुनकर, मेरा साथ छोड़ गई। " मुझे याद रखना " इतना कहकर वह गायब हो गई और यह सुनते ही मैं बुरी तरह से काँपने लगा और उस घने अंधेरे में भी मेरी आँखों के आगे अंधेरा छा गया और मैं बेहोश हो गया। आगे जानने के लिए पढ़ें “मुझे याद रखना - भाग 2”